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Friday, 3 February 2017

Dear old Age Parents : A Short Story

Dear old Age Parents :
जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते  हैं..

देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते  हैं..
सुबह की सैर में कभी चक्कर खा जाते है ..
सारे मौहल्ले को पता है...पर हमसे छुपाते है 
दिन प्रतिदिन अपनी खुराक घटाते हैं और
तबियत ठीक होने की बात फ़ोन पे बताते है.
ढीली हो गए कपड़ों को टाइट करवाते है, 
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..

किसी के देहांत की खबर सुन कर घबराते है, 
और अपने परहेजों की संख्या बढ़ाते है,
हमारे मोटापे पे हिदायतों के ढेर लगाते है, 
"रोज की वर्जिश"के फायदे गिनाते है.
‘तंदुरुस्ती हज़ार नियामत "हर दफे बताते है,  
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..

हर साल बड़े शौक से अपने बैंक जाते है,  
अपने जिन्दा होने का सबूत देकर हर्षाते है,
जरा सी बढी पेंशन पर फूले नहीं समाते है,  
और FIXED DEPOSIT रिन्ऊ करते जाते है, 
खुद के लिए नहीं हमारे लिए ही बचाते है.
 देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..

चीज़ें रख के अब अक्सर भूल जाते है,  
फिर उन्हें ढूँढने में सारा घर सर पे उठाते है, 
और एक दूसरे को बात बात में हड़काते है,
पर एक दूजे से अलग भी नहीं रह पाते है.
एक ही किस्से को बार बार दोहराते है,
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..

चश्में से भी अब ठीक से नहीं देख पाते है, 
बीमारी में दवा लेने में नखरे दिखाते है,
एलोपैथी के बहुत सारे साइड इफ़ेक्ट बताते है,
और होमियोपैथी/आयुर्वेदिक की ही रट लगाते है,
ज़रूरी ऑपरेशन को भी और आगे टलवाते है.
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..

उड़द की दाल अब नहीं पचा पाते है,
लौकी तुरई और धुली मूंगदाल ही अधिकतर खाते है, 
दांतों में अटके खाने को तिली से खुजलाते हैं,
पर डेंटिस्ट के पास जाने से कतराते हैं, 
"काम चल तो रहा है" की ही धुन लगाते है.
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते हैं..

हर त्यौहार पर हमारे आने की बाट देखते है,
अपने पुराने घर को नई दुल्हन सा चमकाते है,
हमारी पसंदीदा चीजों के ढेर लगाते है,
हर छोटी बड़ी फरमाईश पूरी करने के लिए माँ रसोई और पापा बाजार दौडे चले जाते है,
पोते-पोतियों से मिलने को कितने आंसू टपकाते है,
देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते है..

देखते ही देखते जवान माँ-बाप बूढ़े हो जाते है..
😊😊😄

Wednesday, 25 January 2017

Sandalwood's Coal : The Inspirational Story चन्दन के कोयले

Sandalwood's Coal : The Inspirational Story 
*चन्दन के कोयले न बनाओ*:- 
सुनसान जंगल में एक लकड़हारे से पानी का लोटा पीकर प्रसन्न हुआ राजा कहने लगा― हे पानी पिलाने वाले ! किसी दिन मेरी राजधानी में अवश्य आना, मैं तुम्हें पुरस्कार दूँगा, लकड़हारे ने कहा―बहुत अच्छा।
इस घटना को घटे पर्याप्त समय व्यतीत हो गया, अन्ततः लकड़हारा एक दिन चलता-फिरता राजधानी में जा पहुँचा और राजा के पास जाकर कहने लगा― मैं वही लकड़हारा हूँ, जिसने आपको पानी पिलाया था, राजा ने उसे देखा और अत्यन्त प्रसन्नता से अपने पास बिठाकर सोचने लगा कि- इस निर्धन का दुःख कैसे दूर करुँ ? अन्ततः उसने सोच-विचार के पश्चात् चन्दन का एक विशाल उद्यान(बाग) उसको सौंप दिया। लकड़हारा भी मन में प्रसन्न हो गया। चलो अच्छा हुआ। इस बाग के वृक्षों के कोयले खूब होंगे, जीवन कट जाएगा।
यह सोचकर लकड़हारा प्रतिदिन चन्दन काट-काटकर कोयले बनाने लगा और उन्हें बेचकर अपना पेट पालने लगा। थोड़े समय में ही चन्दन का सुन्दर बगीचा एक वीरान बन गया, जिसमें स्थान-स्थान पर कोयले के ढेर लगे थे। इसमें अब केवल कुछ ही वृक्ष रह गये थे, जो लकड़हारे के लिए छाया का काम देते थे।
राजा को एक दिन यूँ ही विचार आया। चलो, तनिक लकड़हारे का हाल देख आएँ। चन्दन के उद्यान का भ्रमण भी हो जाएगा। यह सोचकर राजा चन्दन के उद्यान की और जा निकला। उसने दूर से उद्यान से धुआँ उठते देखा। निकट आने पर ज्ञात हुआ कि चन्दन जल रहा है और लकड़हारा पास खड़ा है। दूर से राजा को आते देखकर लकड़हारा उसके स्वागत के लिए आगे बढ़ा। राजा ने आते ही कहा― भाई ! यह तूने क्या किया ? लकड़हारा बोला― आपकी कृपा से इतना समय आराम से कट गया। आपने यह उद्यान देकर मेरा बड़ा कल्याण किया। कोयला बना-बनाकर बेचता रहा हूँ। अब तो कुछ ही वृक्ष रह गये हैं। यदि कोई और उद्यान मिल जाए तो शेष जीवन भी व्यतीत हो जाए।
राजा मुस्कुराया और कहा― अच्छा, मैं यहाँ खड़ा होता हूँ। तुम कोयला नहीं, प्रत्युत इस लकड़ी को ले-जाकर बाजार में बेच आओ। लकड़हारे ने दो गज [लगभग पौने दो मीटर] की लकड़ी उठाई और बाजार में ले गया। लोग चन्दन देखकर दौड़े और अन्ततः उसे तीन सौ रुपये मिल गये, जो कोयले से कई गुना ज्यादा थे।
लकड़हारा मूल्य लेकर रोता हुआ राजा के पास आय और जोर-जोर से रोता हुआ अपनी भाग्यहीनता स्वीकार करने लगा।
*इस कथा में चन्दन का बाग मनुष्य का शरीर और हमारा एक-एक श्वास चन्दन के वृक्ष हैं पर अज्ञानता वश हम इन चन्दन को कोयले में तब्दील कर रहे हैं। लोगों के साथ बैर, द्वेष, क्रोध, लालच, ईर्ष्या, मनमुटाव, को लेकर खिंच-तान आदि की अग्नि में हम इस जीवन रूपी चन्दन को जला रहे हैं। जब अंत में श्वास रूपी चन्दन के पेड़ कम रह जायेंगे तब अहसास होगा कि व्यर्थ ही अनमोल चन्दन को इन तुच्छ कारणों से हम दो कौड़ी के कोयले में बदल रहे थे, पर अभी भी देर नहीं हुई है हमारे पास जो भी चन्दन के पेड़ बचे है उन्ही से नए पेड़ बन सकते हैं। आपसी प्रेम, सहायता, सौहार्द, शांति,भाईचारा, और विश्वास, के द्वारा अभी भी जीवन सँवारा जा सकता है।*

Tuesday, 24 January 2017

History of Rupee : *रूपये का इतिहास*

History of Rupee :*रूपये का इतिहास*
जरूर पढे
प्राचीन भारतीय मुद्रा प्रणाली*
अपने बचचौ को जरुर पढायै.

फूटी कौड़ी (Phootie Cowrie) से कौड़ी,
कौड़ी से दमड़ी (Damri),
दमड़ी से धेला (Dhela),
धेला से पाई (Pie),
पाई से पैसा (Paisa),
पैसा से आना (Aana),
आना से रुपया (Rupya) बना।
256 दमड़ी = 192 पाई = 128 धेला = 64 पैसा (old) = 16 आना = 1 रुपया

1) 3 फूटी कौड़ी -  1 कौड़ी
2) 10 कौड़ी -  1 दमड़ी
3) 2 दमड़ी -  1 धेला
4) 1.5 पाई -  1 धेला
5) 3 पाई -  1 पैसा ( पुराना)
6) 4 पैसा -  1 आना
7) 16 आना - 1 रुपया

प्राचीन मुद्रा की इन्हीं इकाइयों ने हमारी बोल-चाल की भाषा को कई कहावतें दी हैं, जो पहले की तरह अब भी प्रचलित हैं। देखिए :
●एक 'फूटी कौड़ी' भी नहीं दूंगा।
●'धेले' का काम नहीं करती हमारी बहू !
●चमड़ी जाये पर 'दमड़ी' न जाये।
●'पाई-पाई' का हिसाब रखना।
●सोलह 'आने' सच

Our children n grand children must know the old history of small coins. Our one Rupee was consisting of 256 parts called DAMRI.

Essay on Dear Wife : *पत्नी पर निबंध *

                     
                       *पत्नी पर निबंध *

पत्नी नामक प्राणी भारत सहित पूरे विश्व में बहुतायत पाए जाती है।

प्राचीन समय में यह भोजन शाला में पायी जाती थी, लेकिन वर्तमान में यह शॉपिंग मॉल्स , थिएटर्स  एवं रेस्तरा के नजदीक विचरती हुई अधिक पायी जाती है।

पहले इस प्रजाति में लम्बे बाल, सुन्दर आकृति प्रायः पाये जाते थे। लेकिन अब छोटे बाल, कृत्रिम श्वेत मुख, रक्त के सामान होठ सामान्य रूप से देखे जा सकते है।

इनका मुख्य आहार पति नामक मूक प्राणी होता है। भारत में इन्हें धर्मपत्नी, भाग्यवती, लक्ष्मी नामो से भी जाना जाता है।

अधिक बोलना, अकारण झगड़ना, अति व्यय करना, इस प्रजाति के मुख्य लक्षणों में से है। हालाकि इस प्रजाति पर सम्पूर्ण अध्ययन करना संभव नहीं है, किन्तु सामान्यतः इनके निम्न प्रकार होते है।

*1. सुशील पत्नी* – यह प्रजाति अब लुप्त हो चुकी है। इस प्रजाति की प्राणी सुशील एवं सहनशील होती थी और घरो में ज्यादा पाये जाते थी।

*2. आक्रामक पत्नी* – यह प्रजाति भारत सहित पूरे विश्व में बहुत अधिक मात्रा में पायी जाती है। ये अपनी आक्रामक शैली, एवं तेज प्रहार के लिए जानी जाती है। समय आने पर ये बेलन, झाड़ू और चरण पादुकाओँ का उपयोग अधिक करती है।

*3. झगडालू पत्नी* – यह प्रजाति भी वर्तमान में सभी जगह पायी जाती है। इन्हें जॊर से बोलना और झगडा करना अत्यंत पसंद होता है। इनका अधिकतर सामना “सास” नामक एक और अत्यंत खतरनाक प्राणी से होता है।

*4. खर्चीली पत्नी* – भारत जैसे गरीब देश में भी पत्नियों की ये प्रजाति निरंतर बढती जा रही है। इनकी मुख्य आदतों में क्रेडिट कार्ड रखना, बिना विचार किये खर्च करना और बिना जरूरत वस्तुए खरीदना है। इस प्रजाति के साथ पति नामक प्राणी को चप्पल में थका हुआ पीछे पीछे घूमते देखा जा सकता है।

*5. नखरीली पत्नी* – इस प्रजाति के प्राणी अधिकतर आइने के सामने देखी जाती है। इनके होठ रक्त के सामान लाल, नाख़ून बड़े बड़े, केश सतरंगी और चेहरा श्वेत पाउडर से लिपा होता है। इन्हें भोजन शाला में जाना और काम करना नापसंद होता है।

*चेतावनी – पति नामक प्राणी के लिए इस प्रजाति के प्राणी अत्यंत खतरनाक व आक्रामक होते है। इन्हें समय-समय पर साड़ी, गिफ्ट्स, फ्लावर्स तथा करवा-चौथ के सुअवसर पर गहना इत्यादि के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । लेकिन सनद रहे– केवल कुछ समय के लिए।*

*बीवियों के प्रकार*

*1. आलसी बीवी :::::::::::::*
खुद जाकर चाय बना लो और एक कप मुझे भी दे देना …

*2. धमकाने वाली बीवी ::::*
कान खोलकर सुन लो , या तो इस घर में तुम्हारी माँ रहेगी या मैं …

*3. इतिहास-पसंद बीवी ::::*
सब जानती हूँ तुम्हारा खानदान कैसा है …

*4. भविष्य-वाचक बीवी :::*
अगले साथ जन्मो तक मेरे जैसी बीवी नहीं मिलेगी …

*5. भ्रमित बीवी :::::::::::::*
तुम आदमी हो या पजामा ?

*6. स्वार्थी बीवी :::::::::::::*
ये साड़ी मेरी माँ ने मुझे पहनने को दी है तुम्हारी बहनों के लिए नहीं ..

*7. शक्की बीवी :::::::::::::*
मेरी कौन सी सौतन से फ़ोन पर बात कर रहे थे ?

*8. अर्थशास्त्री बीवी :::::::::*
कौन सा कुबेर का खजाना कमा ले आते हो जो रोज़ पनीर खिलाऊ ?

*9. धार्मिक बीवी :::::::::*
शुक्र करो भगवान् का जो मेरे जैसी बीवी मिली …

*10.कुंठाग्रस्त बीवी :::::::::::::*
मेरे नसीब में तुम ही लिखे थे ?
🙏खुश रहो  सदा हसते रहो ।

आपकी कौन सी है  ! देख लें ?😊

Being Human : Be Vegetarian

Being Human : Be Vegetarian
*कंद-मूल खाने वालों से*
मांसाहारी डरते थे।।

*पोरस जैसे शूर-वीर को*
नमन 'सिकंदर' करते थे॥

*चौदह वर्षों तक खूंखारी*
वन में जिसका धाम था।।

*मन-मन्दिर में बसने वाला*
शाकाहारी *राम* था।।

*चाहते तो खा सकते थे वो*
मांस पशु के ढेरो में।।

लेकिन उनको प्यार मिला
' *शबरी' के जूठे बेरो में*॥

*चक्र सुदर्शन धारी थे*
*गोवर्धन पर भारी थे*॥

*मुरली से वश करने वाले*
*गिरधर' शाकाहारी थे*॥

*पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम*
चोटी पर फहराया था।।

*निर्धन की कुटिया में जाकर*
जिसने मान बढाया था॥

*सपने जिसने देखे थे*
मानवता के विस्तार के।।

*नानक जैसे महा-संत थे*
वाचक शाकाहार के॥

*उठो जरा तुम पढ़ कर देखो*
गौरवमय इतिहास को।।

*आदम से आदी तक फैले*
इस नीले आकाश को॥

*दया की आँखे खोल देख लो*
पशु के करुण क्रंदन को।।

*इंसानों का जिस्म बना है*
शाकाहारी भोजन को॥

*अंग लाश के खा जाए*
क्या फ़िर भी वो इंसान है?

*पेट तुम्हारा मुर्दाघर है*
या कोई कब्रिस्तान है?

*आँखे कितना रोती हैं जब*
उंगली अपनी जलती है

*सोचो उस तड़पन की हद*                  
 जिस्म पे आरी चलती है॥

*बेबसता तुम पशु की देखो*
बचने के आसार नही।।

*जीते जी तन काटा जाए*,
उस पीडा का पार नही॥

*खाने से पहले बिरयानी*,
चीख जीव की सुन लेते।।

*करुणा के वश होकर तुम भी*
गिरी गिरनार को चुन लेते॥

*शाकाहारी बनो*...!

The longest short story of my life with Grace

गुलज़ार द्वारा लिखी किताब *The longest short story of my life with grace* जो उन्होंने अपने धर्मपत्नी *राखी"* को समर्पित की है, से एक अंश:

लोग सच कहते हैं -
औरतें बेहद अजीब होतीं है

रात भर पूरा सोती नहीं
थोड़ा थोड़ा जागती रहतीं है
नींद की स्याही में
उंगलियां डुबो कर
दिन की बही लिखतीं
टटोलती रहतीं है
दरवाजों की कुंडियाॅ
बच्चों की चादर
पति का मन..
और जब जागती हैं सुबह
तो पूरा नहीं जागती
नींद में ही भागतीं है

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं

हवा की तरह घूमतीं, कभी घर में, कभी बाहर...
टिफिन में रोज़ नयी रखतीं कविताएँ
गमलों में रोज बो देती आशाऐं

पुराने अजीब से गाने गुनगुनातीं
और चल देतीं फिर
एक नये दिन के मुकाबिल
पहन कर फिर वही सीमायें
खुद से दूर हो कर भी
सब के करीब होतीं हैं

औरतें सच में, बेहद अजीब होतीं हैं

कभी कोई ख्वाब पूरा नहीं देखतीं
बीच में ही छोड़ कर देखने लगतीं हैं
चुल्हे पे चढ़ा दूध...

कभी कोई काम पूरा नहीं करतीं
बीच में ही छोड़ कर ढूँढने लगतीं हैं
बच्चों के मोजे, पेन्सिल, किताब
बचपन में खोई गुडिया,
जवानी में खोए पलाश,

मायके में छूट गयी स्टापू की गोटी,
छिपन-छिपाई के ठिकाने
वो छोटी बहन छिप के कहीं रोती...

सहेलियों से लिए-दिये..
या चुकाए गए हिसाब
बच्चों के मोजे, पेन्सिल किताब

खोलती बंद करती खिड़कियाँ
क्या कर रही हो?
सो गयी क्या ?
खाती रहती झिङकियाँ

न शौक से जीती है ,
न ठीक से मरती है
सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

कितनी बार देखी है...
मेकअप लगाये,
चेहरे के नील छिपाए
वो कांस्टेबल लडकी,
वो ब्यूटीशियन,
वो भाभी, वो दीदी...

चप्पल के टूटे स्ट्रैप को
साड़ी के फाल से छिपाती
वो अनुशासन प्रिय टीचर
और कभी दिख ही जाती है
कॉरीडोर में, जल्दी जल्दी चलती,
नाखूनों से सूखा आटा झाडते,

सुबह जल्दी में नहाई
अस्पताल मे आई वो लेडी डॉक्टर
दिन अक्सर गुजरता है शहादत में
रात फिर से सलीब होती है...

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं

सूखे मौसम में बारिशों को
याद कर के रोतीं हैं
उम्र भर हथेलियों में
तितलियां संजोतीं हैं

और जब एक दिन
बूंदें सचमुच बरस जातीं हैं
हवाएँ सचमुच गुनगुनाती हैं
फिजाएं सचमुच खिलखिलातीं हैं

तो ये सूखे कपड़ों, अचार, पापड़
बच्चों और सारी दुनिया को
भीगने से बचाने को दौड़ जातीं हैं...

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

खुशी के एक आश्वासन पर
पूरा पूरा जीवन काट देतीं है
अनगिनत खाईयों को
अनगिनत पुलो से पाट देतीं है.

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

ऐसा कोई करता है क्या?
रस्मों के पहाड़ों, जंगलों में
नदी की तरह बहती...
कोंपल की तरह फूटती...

जिन्दगी की आँख से
दिन रात इस तरह
और कोई झरता है क्या?
ऐसा कोई करता है क्या?

सच मे, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं..

*गुलज़ार*

Desire of a Flower : पुष्प की अभिलाषा

पुष्प की अभिलाषा:
मैंने एक फूल से कहा...
...कल तुम मुरझा जाओगे
फिर क्यों मुस्कुराते हो...???
🙏🌹🙏
व्यर्थ में
यह ताजगी किसलिए लुटाते हो...????
🙏🌹🙏
फूल चुप रहा -
इतने में एक तितली आई
पल भर आनंद लिया...उड गई...
🙏🌹🙏
एक भौंरा आया
गान सुनाया, सुगंध बटोरी,
और आगे बढ गया...
🙏🌹🙏
एक मधुमक्खी आई
पल भर भिनभिनाई
पराग समेटा,
और झूमती गाती चली गई...
🙏🌹🙏
खेलते हुए एक बालक ने स्पर्श सुख लिया, रूप-लावण्य निहारा,
मुस्कुराया और खेलने लग गया...
🙏🌹🙏
तब फूल बोला---
--- || मित्र ||
क्षण भर को ही सही
मेरे जीवन ने कितनों को सुख दिया
🙏🌹🙏
क्या तुमने भी कभी ऐसा किया?
🙏🌹🙏
कल की चिन्ता में
आज के आनंद में विराम क्यो करूँ!
🙏🌹🙏
माटी ने जो
रूप, रंग, रस, गंध दिए
उसे बदनाम क्यो करूँ!
🙏🌹🙏
मैं हँसता हूँ
क्योंकि
हँसना मुझे आता है,
🙏🌹🙏
मैं खिलता हूँ
क्योंकि
खिलना मुझे सुहाता है,
🙏🌹🙏
मैं मुरझा गया तो क्या
कल फिर एक नया फूल खिलेगा
न कभी मुस्कान रुकी हैं,
न......ही
सुगंध
🙏🌹🙏
जीवन तो एक सिलसिला है
इसी तरह चलेगा |
🙏🌹🙏
"जो आपको मिला है उस में खुश रहिये
और प्रभु का शुक्रिया कीजिए
क्योंकि आप जो जीवन जी रहे हैं
वो जीवन कई लोगों ने देखा तक नहीं है । "

🌷खुश रहिये🌷
        💐💐
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